जलवायु परिवर्तन का असर, दिल्ली-यूपी में मानसून आने की तारीखें बदलेंगी
जलवायु परिवर्तन का असर मानसून पर साफ देखा जा रहा है। इसके चलते सरकार ने मानसून के आगमन और विदाई की तारीखों में बदलाव करने का फैसला किया है। दिल्ली यूपी समेत कई राज्यों में मानसून के आगमन की तारीख बढ़ाई जाएगी। केरल में तिथि 1 जून ही रहेगी।
तारीखों में बदलाव की कवायद काफी समय से चल रही थी जिसे इस साल से लागू किया जाएगा। दिल्ली में मानसून के आगमन की तिथि 29 जून है, लेकिन नई तिथि जुलाई के पहले सप्ताह की निर्धारित हो सकती है।
यह देखने में आया है कि दिल्ली में मानसून लगातार सप्ताह भर की देरी से पहुंच रहा है। पृथ्वी विभाग के सचिव एम राजीवन ने बताया कई प्रदेशों में इसके आने की तिथियों में बदलाव हो सकते हैं। इस मुद्दे पर मौसम विज्ञानियों की एक विशेषज्ञ समिति ने कुछ समय पूर्व अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपी थी। इन सिफारिशों में कई प्रदेशों में मानसून के आगमन की तिथियों में बदलाव सुझाया गया है।
इन राज्यों में बदलाव : यूपी व दिल्ली के अलावा झारखंड, बिहार, उत्तराखंड में भी मानसून के आगमन की तिथियों को बढ़ाया गया है। जबकि राजस्थान, पंजाब और कश्मीर में पहुंचने की तिथियों को पहले से जल्द किया गया है। जबकि केरल से बंगाल तक मानसून पहुंचने की तारीखें यथावत रहेंगी।
नई तिथियों का ऐलान जल्द : मौसम विभाग के महानिदेशक एम. महापात्र ने कहा कि मानसून की नई तिथियों का ऐलान जल्द किया जाएगा। इसी प्रकार मानसून की विदाई की तिथि को आगे खिसका दिया जाएगा। राजस्थान से सितंबर के पहले सप्ताह में मानसून की विदाई होती है लेकिन इसे तीसरे सप्ताह में किया जाएगा। क्योंकि कई सालों से मानसून देर तक उत्तर भारत में सक्रिय रहता है।
असर : फसल चक्र में बदलाव करना होगा
मौसम की तारीखों में बदलाव से किसानों पर फसल चक्र में बदलाव का दबाव पड़ेगा, या उन्हें कम अवधि में तैयार होने वाली फसलें तैयार करनी होंगी। मसलन, यूपी में यदि मानसून के आगमन में एक हफ्ते की देरी को आधिकारिक घोषित किया जाता है तो धान की रोपाई एक सप्ताह आगे खिसकानी होगी। इसके अलावा नई तिथियों से मानसून से जुड़ी अन्य तैयारियों को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी।
1965 में तय हुई थी तारीखें
मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक डॉ. केजे रमेश ने कहा कि मौजूदा तिथियां 1965 के आसपास निर्धारित की गई थीं लेकिन तब से जलवायु में बड़े बदलाव हुए हैं। पिछले दो दशकों में सबसे ज्यादा परिवर्तन हुए हैं। इसलिए मानसून की तारीखें बदलना समय की जरूरत है